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श्री हनुमानबाग मंदिर / श्री राजाराम राज दरबार की स्थापना
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लघु काशी ‘गढ़ा’ प्राचीन काल से गौडवाना सम्राज्य की एतिहासिक धरोहर है | यहाँ पर अनेकों प्राचीन स्मारक एवं सिद्ध मंदिर हैं जो संतों, तपस्वी, विद्वानजनों के पुण्य प्रतापों से गढ़ित है | इसके दक्षिण में माँ ब्रम्हाचारणी नर्मदा के पावन तट पर विराजित हैं जिनकी निर्मल कृपा से समस्त भक्तों का कल्याण हो रहा है जाबालि ऋषि की तपो स्थली जाबालिपुरम के मध्य स्थित गढ़ा के केंद्र में प्राचीनकाल से स्थित है ‘हनुमानबाग’|

परिचय - धर्मविभूषण पं. श्री ब्रजेश मिश्रा, महाराज जी

उमा जे राम चरण रत विगत काम मद क्रोध | निज प्रभुमय देखहिं जगत केही सन करहिं विरोध ||

शिवजी कहते है कि उमा, जो मनुष्य काम क्रोध मोह मद जैसे समस्त विकारों को त्याग कर राम नाम का ही आधार पर जीते है तो समस्त जगत उन्हें राममय ही दिखता है और राम में ही समस्त जगत मिल जाता है | फिर उन्हें राम के अतिरिक्त कुछ भी पाने की जिज्ञासा नहीं रह जाती |

विगत दो वर्षों से हम जिस दिव्य व्यक्तित्व के जीवन परिचय को पढ़ते आ रहा है उन्हें पूर्ण रूपेण जानना या समझ पाना वास्तव में अम्बर को छोर ढूढने जैसा कार्य हैं |

नन्हें बालक ब्रजेश का जन्म जब हुआ तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इस बालक का जीवन या कर्म क्या होगा | अपने नन्हें - नन्हें हाथों एवं ललाट की रेखाओं में अध्यात्म के कौन से आयाम विद्धमान है यह तो अकल्पनीय सी बात रही होगी परन्तु बाल्य काल से ही भगवान राम के जीवन चरित्र में लालसा, रामलीलाओं में रूचि और भगवत कथाओं में अदभुत आनंद ऐसी ही दिनचर्या में दिन और रात बीतते थे | यह रामरस की प्रीति और राम जी का अनुराग नित्य हनुमान जी महाराज के चरणों की ओर आकृष्ट करता गया | बालक ब्रजेश धीरे-धीरे तरुण फिर किशोर और युवा अवस्था की ओर बढ़ते गए तो कहते हैं ना कि-

वही जानाहि जेहू देहि जनाई | जानत तुम्हीं तुम्हहिं होई जाई ||

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